20 जुलाई को फालुन दाफा के चीन में दमन के इक्कीस वर्ष – जानिये भारत के लिए यह प्रासंगिक क्यों है
मन और शरीर की साधना पद्धति फालुन दाफा का अभ्यास विश्व में 100 से अधिक देशों में 10 करोड़ से अधिक लोगों द्वारा किया जा रहा है। लेकिन दुःख की बात यह है कि चीन, जो फालुन दाफा की जन्म भूमि है, वहां 20 जुलाई 1999 से इसका दमन किया जा रहा है जो आज तक जारी है। 20 जुलाई के दिन को फालुन दाफा अभ्यासी दुनियाभर में विरोध दिवस के रूप में मनाते हैं और शांतिपूर्वक प्रदर्शन और कैंडल लाइट विजिल द्वारा लोगों को चीन में हो रहे बर्बर दमन के बारे में अवगत कराते हैं।
फालुन दाफा (जिसे फालुन गोंग भी कहा जाता है) बुद्ध और ताओ विचारधारा पर आधारित एक प्राचीन साधना पद्धति है जिसे वर्तमान समय में श्री ली होंगज़ी द्वारा 1992 में चीन में सार्वजनिक किया गया। फालुन दाफा और इसके संस्थापक, श्री ली होंगज़ी को, दुनियाभर में 1,500 से अधिक पुरस्कारों और प्रशस्तिपत्रों से नवाज़ा गया है। श्री ली होंगज़ी को नोबेल शांति पुरस्कार व स्वतंत्र विचारों के लिए सखारोव पुरस्कार के लिए भी मनोनीत किया जा चुका है।
चीन में फालुन गोंग का दमन
इसके स्वास्थ्य लाभ और आध्यात्मिक शिक्षाओं के कारण फालुन गोंग चीन में इतना लोकप्रिय हुआ कि 1999 तक करीब 7 से 10 करोड़ लोग इसका अभ्यास करने लगे। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की मेम्बरशिप उस समय 6 करोड़ ही थी।
चीनी कम्युनिस्ट शासकों ने फालुन गोंग की शांतिप्रिय प्रकृति के बावजूद इसे अपनी प्रभुसत्ता के लिए खतरा माना और 20 जुलाई 1999 को इस पर पाबंदी लगा कर कुछ ही महीनों में इसे जड़ से उखाड़ देने की मुहीम चला दी।
पिछले 20 वर्षों से फालुन गोंग अभ्यासियों को चीन में यातना, हत्या, ब्रेनवाश, कारावास, बलात्कार, जबरन मज़दूरी, दुष्प्रचार, निंदा, लूटपाट, और आर्थिक अभाव का सामना करना पड रहा है। अत्याचार की दायरा बहुत बड़ा है और मानवाधिकार संगठनों द्वारा दर्ज़ किए गए मामलों की संख्या दसियों हजारों में है।
चीन में अवैध मानवीय अंग प्रत्यारोपण अपराध
यह अविश्वसनीय लगता है, किन्तु चीन में अंगों के प्रत्यारोपण के लिए अंग न केवल मृत्युदण्ड प्राप्त कैदियों से आते हैं, बल्कि बड़ी संख्या में कैद फालुन गोंग अभ्यासियों से आते हैं। चीन में मानवीय अंग प्रत्यारोपण के इस अपराध में बड़े पैमाने पर अवैध धन कमाया जा रहा है। चीन के अवैध मानवीय अंग प्रत्यारोपण उद्योग का सालाना कारोबार 1 बिलियन डॉलर का है।
स्वतंत्र जाँच द्वारा यह प्रकाश में आया है कि चीनी शासन, सरकारी अस्पतालों की मिलीभगत से, कैदियों के अवैध मानवीय अंग प्रत्यारोपण के अपराध में संग्लित है। किल्गौर और मातास रिपोर्ट के अनुसार सन 2000 और 2005 के बीच चीन में करीब 41500 अंग प्रत्यारोपण किये गए जिनमे अंगों का स्रोत अज्ञात है। स्वतंत्र जाँचकर्ता और चीन विशेषग्य इथन गुट्मन की पुस्तक “द स्लॉटर” के अनुसार चीन में सन 2000 और 2008 के बीच 65000 फालुन गोंग अभ्यासियों को उनके अंगों के लिए मौत के घाट उतार दिया गया। इस विषय पर अधिक जानकारी के लिए देखें: www.endtransplantabuse.org
भारत में भी 20 जुलाई को मनाया जाएगा विरोध दिवस
दुनिया भर के फालुन दाफा अभ्यासियों की भांति भारत के फालुन दाफा अभ्यासी भी 20 जुलाई को शांतिपूर्वक प्रदर्शन और कैंडल लाइट विजिल का आयोजन करते हैं। क्योंकि इस लॉक डाउन अवस्था में बाहरी गतिविधि नहीं की जा सकती, भारत के फालुन दाफा अभ्यासी इस वर्ष सोशल और प्रिंट मीडिया द्वारा चीन में हो रहे दमन के बारे में लोगों को अवगत करा रहे हैं।
भारत में सन 2000 से फालुन दाफा का अभ्यास सभी प्रमुख शहरों में किया जा रहा है। फालुन दाफा के बारे में अधिक जानकारी और निशुल्क सीखने के लिए देखें : www.falundafa.org, www.falundafaindia.org
यह भारत के लिए प्रासंगिक क्यों है?
पिछले कुछ समय से भारत और चीन के बीच संबंध तनावपूर्ण रहे हैं। भारत पर दबाव बनाने के लिये चीन मसूद अजहर समर्थन, अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख बॉर्डर विवाद आदि का इस्तेमाल करता रहा है। भारत के कड़े रुख और इसके बाद चीनी सामान के बायकाट की मुहीम ने चीन को भारत की ताकत का अंदाजा लगा दिया है। किंतु चीन स्वयं आज एक दोराहे पर खड़ा है। एक ओर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी है जिसका इतिहास झूठ, छल और धोखाधड़ी का रहा है। दूसरी ओर वहां लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की आवाजें उठ रही हैं।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की धारणाएं और नीतियां उन सभी चीजों का खंडन करती हैं जिनका भारत जैसी एक प्राचीन संस्कृति और आधुनिक लोकतंत्र प्रतिनिधित्व करता है। भारत के पास चीन को सिखाने के लिये बहुत कुछ है। भारत को चीन में तिब्बत बोद्ध, वीगर मुस्लिम, फालुन गोंग और हांगकांग हो रहे घोर मानवाधिकार अपराधों की निंदा करनी चाहिए। यही सोच भारत को विश्वगुरु का दर्जा दिला सकती है।