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बच्चे के शरीर के किसी भी अंग में गांठ या गिल्टी को न करें नज़रअंदाज : डीटीओ

  


बच्चों को सुपोषित बनाकर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं और टीबी से बचाएं

 


कासगंज, 15 जुलाई  2023।


स्थानीय हीरापुर निवासी 12 वर्षीय लकी के गले में टीबी यानि एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी हो गई थी। समय से ध्यान न देने से टीबी एमडीआर तक पहुंच गई। पूरी तरह उपचार लेने पर वह अब बिल्कुल स्वस्थ है और सामान्य ज़िन्दगी जी रहा है। टीबी लाइलाज बीमारी नहीं है, नियमित उपचार और बेहतर पोषण से रोगी टीबी मुक्त हो सकता है।  


लकी की माँ यशोदा ने बताया - लकी कक्षा सात का छात्र है। डेढ़ वर्ष पहले लकी के गले में गांठ हो गईं और लगातार बुखार और खांसी की शिकायत थी। एटा में डॉक्टर को दिखाया। करीब पंद्रह दिन तक डॉक्टर ने दवा की जिससे कोई आराम नहीं मिला। इसके बाद डॉक्टर ने टीबी की जांच कराने की सलाह दी। टीबी अस्पताल में जाँच कराई जिसमें टीबी की पुष्टि हुई। डॉक्टर ने बताया कि लकी को एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी है जो कि ध्यान न देने पर बिगड़कर एमडीआर के रूप में पहुंच चुकी है। तुरंत ही उपचार शुरू कर दिया और टीबी अस्पताल से नियमित दवा लेने की सलाह दी गई।



यशोदा बताती हैं कि शुरुआत में लकी दवा को छिपाकर फेंक देता था। पूछने पर लकी कहता कि दवा खाने पर उसे उल्टी आती है। जब यशोदा ने यह बात डॉक्टर को बताई तो उन्होंने काउंसलिंग की और दवा का महत्व समझाया। उसके बाद लकी ने पूरा कोर्स करने का संकल्प लिया। उपचार के दौरान निक्षय पोषण योजना के तहत 500 रुपये प्रतिमाह मिलते थे जिससे यशोदा ने उसके पोषण की व्यवस्था की। नौ माह का कोर्स पूरा करने के बाद डॉक्टर ने जनवरी में लकी की जाँच कराई जिसमें टीबी नहीं निकली। अब लकी बिल्कुल स्वस्थ है पर डॉक्टर ने उसे ठंडी वस्तुओं से परहेज़ करने की सलाह दी है।


किशोर-किशोरियों को टीबी से सतर्क रहने की ज़रूरत – जिला क्षय रोग अधिकारी


जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ. मनोज शुक्ला के अनुसार समय रहते अगर टीबी का उपचार हो जाए तो यह पूरी तरह से सही हो सकती है। टीबी का बैक्टीरिया अक्सर कमज़ोर प्रतिरोधक क्षमता वालों पर प्रहार करता है। ऐसे में बढ़ती उम्र के किशोर-किशोरी अगर कुपोषण के शिकार हो जाएं तो उनकी प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है और उन्हें अन्य संक्रमण समेत टीबी होने का खतरा भी बढ़ जाता है। पढ़ाई और कोचिंग के चलते इनका सामाजिक संपर्क होने के कारण इन्हें टीबी से बचाव का विशेष ध्यान रखना चाहिए। डॉ. शुक्ला ने बताया कि किशोरियों में एस्ट्रोजेन हार्मोन स्तर के उतार-चढ़ाव होने के कारण भी प्रतिरोधक क्षमता पर असर पड़ता है। इसलिए उन्हें भी अपने बचाव और खानपान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। किशोर-किशोरियों में टीबी होने से उनके स्वास्थ्य व जिन्दगी में आगे बढ़ने की क्षमता पर असर पड़ सकता है।


क्षय रोग के दौरान भी पोषक तत्वों की आवश्यकता सामान्य दिनों से ज्यादा होती है। इसलिए क्षय रोगी को उपचार के साथ पोषण युक्त भोजन जैसे कि दालें, अनाज, घी, दही, दूध, पनीर, हरी पत्तेदार सब्जियां, फल, अंडा, मछली आदि भरपूर मात्रा में दें। दवाओं के साथ बेहतर आहार टीबी मरीज को जल्द से जल्द सही करने में सहायक होता है। 


इन लक्षणों को न करें नज़रंदाज़


जिला क्षय रोग कार्यक्रम समन्वयक धर्मेंद्र यादव ने कहा कि किसी भी बच्चे को दो हफ्ते से ज़्यादा लगातार खांसी व बुखार बना हो, बच्चा चिडचिड़ा एवं सुस्त हो, बच्चे की उम्र के साथ वजन नहीं  बढ़ रहा या लगातार वजन घट रहा हो, बच्चे के शरीर के किसी हिस्से में गांठ व गिल्टी हो आदि टीबी के लक्षण हो सकते हैं। इसको नज़रअंदाज न करें, तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर जाकर टीबी की जाँच कराएं। पूरा उपचार कराएं, इलाज अधूरा छोड़ने से टीबी घातक हो सकती है। टीबी मरीज को उपचार के दौरान निक्षय पोषण योजना के तहत प्रति माह 500 रुपये रोगी के खाते में बेहतर खानपान के लिए भेजे जाते हैं। उन्होंने बताया कि जनवरी 2023 से अब तक 12 वर्ष से 17 वर्ष की आयु तक के 260 बच्चे टीबी से ग्रसित हैं, जिनका उपचार चल रहा है।

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