एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी पर भी बराबर ध्यान देने की ज़रूरत : जिला क्षय रोग अधिकारी
कासगंज, 8 अगस्त- 2023।
नाख़ून और बाल को छोड़कर टीबी शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकती है। फेफड़ों के अलावा किसी भी अंग में यदि टीबी हो तो उसे एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी कहा जाता है। इंडिया टीबी रिपोर्ट 2022 के अनुसार उत्तर प्रदेश के कुल चिन्हित टीबी रोगियों में से 25 प्रतिशत मरीज़ एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी के हैं। आमतौर पर इस तरह की टीबी के लक्षण स्पष्ट नहीं दिखते या दूसरी बीमरियों से मिलते-जुलते होते हैं जिसकी वजह से इसकी पहचान और प्रबंधन में चुनौतियाँ आती हैं। इसी वजह से एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी पर बराबर ध्यान देने की ज़रूरत है। हालाँकि नेशनल स्ट्रेटेजिक प्लान (2017-2025) के तहत सरकार टीबी उन्मूलन के लिए हरस्तर के प्रयास कर रही है। यह कहना है जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ मनोज शुक्ला का।
डॉ. शुक्ला ने बताया कि स्पाइनल टीबी यानि रीढ़ की हड्डी की टीबी भी एक तरह की एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी है। कमर में दर्द रहना, वजन कम होना, शारीरिक कमजोरी, भूख न लगना, बुखार, सीने में दर्द, रीढ़ की हड्डी में सूजन होना आदि स्पाइनल टीबी के लक्षण हो सकते हैं। ऐसे लक्षणों को नज़रंदाज़ न करें क्योंकि इससे शारीरिक दिव्यांगता भी आ सकती है।
उदाहरण के तौर पर ब्लॉक सोरों ग्राम कदरवाड़ी की रहने वाली 30 वर्षीया राममूर्ति जिन्हें स्पाइनल टीबी के कारण चलने -फिरने में भी परेशानी होने लगी थी। अब पिछले चार महीने से टीबी अस्पताल से उपचार ले रही हैं और पहले से स्वस्थ महसूस कर रही हैं।
राममूर्ति बताती हैं कि घरेलू हिंसा से तंग आकर वह पिछले तीन वर्षों से अपने तीन बच्चों को लेकर अपने भाई-भाभी और माँ के साथ रह रहीं हैं। ससुराल से ही हल्का हल्का कमर दर्द की समस्या होने लगी थी। लेकिन घर के काम काज और बच्चों की देखभाल में ज़्यादा गौर नहीं किया। धीरे-धीरे वजन भी कम होने लगा, जिससे कमज़ोरी बढ़ गई। थोड़ा सा भी चलने फिरने में सांस फूल जाती थी। शुरू में दिल्ली के निजी अस्पताल से उपचार कराया। इस दौरान दो वर्ष में लगभग दो लाख रूपये खर्च हो गए। यहाँ तक कि कर्ज़ लेने की नौबत आ गई। फिर भी उनके भाई ने हिम्मत नहीं हारी और कासगंज के विमला हॉस्पिटल गोराह में दिखाने के लिए ले गए जहाँ डॉक्टर ने एमआरआई और एक्सरे जाँच कराई, जिसमें एमडीआर स्पाइनल टीबी की पुष्टि हुई। डॉक्टर का कहना था कि जांच और इलाज में देरी की वजह से टीबी ने एमडीआर का रूप ले लिया।
वहाँ के डॉक्टर ने टीबी अस्पताल के लिए रेफर कर दिया। जहाँ रिपोर्ट देखते ही तुरंत उनका उपचार शुरू कर दिया गया। डॉक्टर ने राममूर्ति को डेढ़ वर्ष तक पूरा उपचार और पोषणयुक्त आहार लेने की सलाह दी है। राममूर्ति का कहना है – मैंने ठान लिया है कि मैं नियमित दवा सेवन कर टीबी का कोर्स पूरा करूंगी जिससे कि मैं पहले की तरह स्वस्थ हो सकूं।
पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते अपने स्वास्थ्य को अनदेखा न करें महिलाएं
जिला क्षय रोग अधिकारी ने बताया - परिवार के प्रति ज़िम्मेदारियों की वजह से महिलाएँ अपने स्वास्थ्य और पोषण को नज़रंदाज़ करती हैं| कुपोषण, देखभालकर्ता का फ़र्ज़ निभाने और घर के चूल्हे से उठने वाले धुएं के निरंतर संपर्क में रहने से उन्हें टीबी का जोखिम बना रहता है| यह ज़रूरी है कि महिलाएं अपने स्वास्थ्य की अनदेखी न करें और परेशानी होने पर तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर दिखाएं। उन्होंने बताया कि रीढ़ की हड्डी की टीबी का उपचार लगभग डेढ़ से दो वर्ष तक चलता है। नियमित दवा के सेवन व बेहतर पोषण से से टीबी पूरी तरह ठीक हो जाती है। बीच में टीबी का उपचार छोड़ने पर अपंगता भी हो सकती है।
राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम जिला समन्वयक धर्मेंद्र यादव ने बताया कि जिले में वर्ष 2022 में 826 एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी के वयस्क मरीज़ थे। वर्तमान में जनवरी से अब तक 539 वयस्क मरीज़ हैं जिनका उपचार चल रहा है। प्रत्येक टीबी मरीज को उपचार के दौरान निक्षय पोषण योजना के तहत प्रति माह 500 रुपये रोगी के खाते में बेहतर खानपान के लिए भेजे जाते हैं।